( तर्ज- अगर हैं ग्यानको पाना ० )
कहा करते है साधूजन
भरा तूही सभी घटमें ' ।
भजन करना किसीका फिर ,
किसी के जायकर मठमें ? ॥टेक ॥
अगर तुमही हो जलथलमें ,
सभी मंदरमें मसजिदमें ।
तो न्याराभी कहो क्या है ?
कि जिसके हम लगें पगमें ॥ १ ॥
बडा है तू , खडा है तू ,
जगा है तू तुही सोया
अखिल इस विश्वमें तेरा ,
भरा है नूर घूँघटमे || २ ||
तुहि राजा , प्रजा है तू ,
तु है भोगी , है रोगी तू
तो किसकारणसे कोईको ,
कहूँ निच - ऊँच में झटमे || ३ ||
समझता हूँ में यह आखिर ,
जो ग्यानी जानते होगे
उन्हें बंधन नही कोई ,
मरण - जीनेकाभी हठमे || ४ ||
कहे तुकड्या समझना यह ,
कठिन पडता है अंधोंको । ‘
प्रभूही खेलता सारा ,
भोग - सुख दुःख - झंजट में || ५ ||
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